करम पर्व का क्या है संदेश

कर्म और धर्म में हो समन्वय
तभी रहेगी दुनिया, तभी बचेगी प्रकृति

अभी हाल की ही खबर है यूरोप से- जो अपने ठंडे मौसम के लिए जाना जाता है. वहां इस बार अप्रत्याशित गर्मी पड़ी जिससे जनजीवन पर असर पड़ा. गर्मी की वजह से एल्पेस पर्वत श्रृंखला के कई ग्लेशियर पिघल रहे हैं. ब्रिटेन में लोग गर्मी से परेशान हैं.

पड़ोसी देश पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ से सिंध और बलूचिस्तान प्रांत में भारी तबाही हुई है. बड़ी संख्या में मौतें हुई है और लाखों की संख्या में लोग बेघर हो गए हैं.


अपने राज्य झारखंड में भी पिछले कुछ सालों से मानसून के पैटर्न में बदलाव देखने को मिल रहा है. इस बार भी देर से मानसून आया जिससे, कई जिलों में समय पर रोपनी नहीं हो सकी है. राज्य सरकार ने कई जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया है.

विश्व के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह की प्राकृतिक प्राकृतिक आपदाओं को विद्वान, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखते हैं. लोगों का यह भी कहना है कि दरअसल ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की मूल वजह धरती पर इंसानों का प्रकृति के साथ की जा रही अनावश्यक छेड़छाड़ है.

कहा जा सकता है कि हम इंसान इस धरती पर ऐसे काम कर रहे हैं जिसकी वजह से इंसानों के साथ साथ समूचे प्राणी और वनस्पति जगत का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है.

तो भादो की एकादशी यानी करम/कर्मा पर्व के अवसर पर इन बातों का जिक्र करने का औचित्य क्या है ? दरअसल तीव्र औद्योगिकीकरण और विकास की अंधी दौड़ के दुष्परिणाम प्रत्यक्ष रूप से सामने आ रहे हैं. ऐसे में करम का पर्व हमें यह संदेश देता है कि हम ठहरे और फिर से प्रकृति की शरण में जाएं.

कर्म पर्व सिखाता है कि कैसे हम अपने कर्म और धर्म में संतुलन बना कर एक सरल और खुशहाल जीवन जिए


बीते कई दशक से करम पर्व का विस्तार देश के कई राज्यों में हुआ है. झारखंड से लेकर छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल, मध्य प्रदेश, असम, दिल्ली और अंडमान सहित कई क्षेत्रों में धूमधाम से करम पर्व मनाया जा रहा है. यहां तक की कुछ पड़ोसी देश जैसे नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में भी झारखंड से पलायन करने वाले लोग इस त्यौहार को मना रहे हैं.

अखड़ा रंग बिरंगी झंडियों और फूलों से सजा हुआ है. मांदर की मधुर थाप जीवन का संगीत फैला रहे है. बहने अपने भाईयों के लिए उपवास रख रही हैं वहीं, कथावाचक करमा और धरमा नामक दो भाईयों की कथा सुना रहे हैं.

और इस कथा का सार क्या है..? यहीं की कर्म के साथ धर्म यानी अपने ईश्वर (प्रकृति) की भी आराधना करें. उसकी इज्जत करें. हम प्रकृति से उतना ही लें जितना की जरुरत हो. उसका दोहन न करें.

इंसान, अन्य प्राणियों और वनस्पति जगत में साहचर्य का संबंध हो. और यह संबंध यह संतुलन तो हम इंसानों को ही बनाना है.

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